Bihar# भोजपुरी समाज
30 / 3 / 2020 । स्वास्थ
कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत के लिए एक आसानी है कि उसके पास प्रशिक्षण कीटों के उत्पादन की क्षमता मौजूद है मगर लगभग एक अरब 30 करोड़ की आबादी के लिए पर्याप्त संख्या में कीटों का उत्पादन कर पाना एक बड़ी चुनौती है। एक तो बड़ी आबादी जिसका मतलब है कि उन सभी लोगों का प्रशिक्षण कैसे करें जिनका प्रशिक्षण करने की आवश्यकता है इसलिए देश के स्वास्थ्य ढांचे पर बहुत दबाव है।
स्वास्थ्य प्रणाली को काम करने देना होगा, जिससे जिन लोगों का प्रशिक्षण करने की जरूरत है उनका प्रशिक्षण हो सके ऐसे लोग जो संक्रमित देशों से लौटे हैं, ऐसे लोग जिनमें लक्षण नजर आ रहे हैं या ऐसे लोग जो पहले से ही सांस की परेशानी के कारण अस्पताल में भर्ती है। इसलिए हमें स्वास्थ्य प्रणाली को चुनिंदा तौर पर टेस्ट करने देना होगा क्योंकि विकसित देशों में भी इतनी जल्दी इतनी ज्यादा प्रशिक्षण क्षमता मौजूद नहीं है। सरकार के स्तर पर, सामुदायिक स्तर पर सभी को सोचना होगा कि हालात बदतर होने से कैसे रोका जाए। साथ ही उन परिवारों और माता-पिता की समस्याओं का हल कैसे निकाला जाए जो अलग-अलग राज्यों में अकेले रह रहे हैं क्योंकि उनके बच्चे दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं जहां तालाबंदी के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती भी दरपेश है।
भारत में लोग बिना किसी सैन्य दखल के आदेशों का पालन कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत के लोगों में इस परिस्थिति को लेकर गंभीरता है और उन्हें भरोसा है कि उनकी सरकार जब कह रही है कि यह जरूरी है तो वह सच है। इसका यह भी मतलब है कि इससे इसके सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य पहलुओं पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ेंगे। इसलिए इसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
भारत में लोगों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि कृषि पर निर्भर लोग, उत्तरी प्रांतों में ग्रामीण क्षेत्रों से शहर में जाने वाले लोग, युवा, प्रवासी मजदूर, महिला, लड़की, नौजवान यह सभी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहे हैं। परिणाम स्वरूप उनके परिवार भी प्रभावित हो रहे हैं जो इन लोगों द्वारा अर्जित आय पर निर्भर है। जो दिहाड़ी मजदूर हैं और यह अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं। सबसे ज्यादा चिंता उन्हीं लोगों की है और मेरा मानना है कि सरकार भी सामान्य रूप से चिंतित है। यही कारण है कि मैंने खबरों को पढ़ा कि इन लोगों की मदद करने के लिए एक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई है।
लेकिन वास्तव में यह भी समझना होगा कि उन्हें न केवल लॉक यानी तालाबंदी की अवधि के दौरान मदद की आवश्यकता होगी बल्कि अगर तालाबंदी की अवधि बढ़ाई गई तो मुश्किलें और ज्यादा बढ़ेगी।